मनमानी पत्रकारिता से जनता और प्रशासन परेशान: यूट्यूब चैनल की बेलगाम रिपोर्टिंग बनी मुसीबत, जिम्मेदार मौन

मनमानी पत्रकारिता से जनता और प्रशासन परेशान: यूट्यूब चैनल की बेलगाम रिपोर्टिंग बनी मुसीबत, जिम्मेदार मौन

हरदा, 01 अगस्त।
जिले में बीते कुछ समय से यूट्यूब न्यूज चैनलों की भरमार हो गई है। इनमें से कुछ चैनल जहां जनता की समस्याओं को ईमानदारी से उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं कई ऐसे स्वघोषित पत्रकार भी सक्रिय हो गए हैं, जो न तो पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों को मानते हैं और न ही किसी भी तरह की विधिवत मान्यता रखते हैं। ऐसे तथाकथित यूट्यूब पत्रकारों की बेलगाम और भ्रामक रिपोर्टिंग से आम नागरिक, अधिकारी, जनप्रतिनिधि और समाज के विशिष्ट वर्गों तक में असंतोष की स्थिति बनती जा रही है।

❖ पत्रकारिता की आड़ में मनमानी

जिले में दर्जनों यूट्यूब चैनल ऐसे संचालित हो रहे हैं जो बिना किसी पंजीयन, प्रेस मान्यता या पत्रकारिता प्रशिक्षण के केवल मोबाइल फोन और माइक लगाकर "पत्रकार" बन चुके हैं। ये लोग बगैर अनुमति, बिना किसी तथ्यों की पुष्टि किए सरकारी दफ्तरों में घुस जाते हैं, जिम्मेदार अधिकारियों से मनचाहे और उग्र तरीके से सवाल करते हैं। कई बार तो सवाल ऐसे होते हैं जिनका न तो विषय से कोई संबंध होता है और न ही उनका कोई सामाजिक औचित्य। इसका ताजा उदाहरण उस समय देखने को मिला जब जिले के प्रभारी मंत्री एक कार्यक्रम में पहुंचे थे और एक यूट्यूब चैनल के पत्रकार ने धार्मिक आधार पर भ्रामक और आपत्तिजनक सवाल पूछकर माहौल को तनावपूर्ण बना दिया।

❖ धर्म, जाति और समाज पर लक्षित कवरेज

कुछ यूट्यूब चैनल अपनी व्यूअरशिप और लाइक के चक्कर में खास धर्म या जाति विशेष को लेकर लगातार भ्रामक और एकतरफा रिपोर्टिंग कर रहे हैं। इससे समाज में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनती है और आपसी भाईचारे पर असर पड़ता है। विडंबना यह है कि इस प्रकार की रिपोर्टिंग पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं होती, जिससे इनके हौसले और बुलंद हो जाते हैं। कई जगह ऐसे मामलों में पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता भी सामने आई है, जहां स्पष्ट उकसाने वाली भाषा और वीडियो सामग्री होने के बावजूद कार्रवाई नहीं की गई।

❖ अधिकारियों की छवि पर हमला

ऐसे यूट्यूब चैनलों के कुछ लोग विभागीय दफ्तरों में पहुंचकर रिकॉर्डिंग शुरू कर देते हैं और अधिकारी-कर्मचारियों पर दबाव बनाते हैं कि वे कैमरे के सामने जवाब दें। वे संवेदनशील फाइलों, बंद कमरों, या प्रक्रिया के अधीन मामलों पर भी बयान देने की जबरदस्ती करते हैं। जब अधिकारी कानूनन या प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत बयान देने से इनकार करते हैं, तो इनके खिलाफ वीडियो बनाकर उन्हें "भ्रष्ट", "गैरजिम्मेदार", या "छुपाने वाला" बताया जाता है। इससे संबंधित विभागों की छवि धूमिल होती है और जनमानस में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।

❖ पुलिस व प्रशासनिक तंत्र की लाचारी

हालांकि ऐसे यूट्यूब चैनलों की गतिविधियों को लेकर समय-समय पर शिकायते पुलिस व जनसंपर्क विभाग को मिलती रही हैं, लेकिन अभी तक इन पर कोई स्पष्ट और सख्त कार्रवाई नहीं की गई है। इसका कारण है कि वर्तमान कानून में यूट्यूब या सोशल मीडिया चैनलों की स्पष्ट परिभाषा और उनकी जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है। परिणामस्वरूप ऐसे तत्व अपने निजी स्वार्थ या किसी खास एजेंडे के तहत रिपोर्टिंग कर रहे हैं, जिससे जिले का माहौल और कानून-व्यवस्था प्रभावित हो रही है।

❖ जनप्रतिनिधियों व कर्मचारियों की नाराजगी

कई जनप्रतिनिधि व कर्मचारी खुलेआम यह कहने लगे हैं कि अब वे मीडिया के सवालों से नहीं, बल्कि यूट्यूब चैनलों की सनसनीखेज पत्रकारिता से डरते हैं। उन्हें यह भय सताता है कि कोई भी चैनल उनके किसी भी बयान या कार्य को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर देगा और सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा, जिससे उन्हें व्यक्तिगत और सामाजिक बदनामी का सामना करना पड़ेगा।

❖ जनहित के नाम पर निजी एजेंडा

कुछ यूट्यूब चैनल संचालक खुद को जनहितैषी बता कर विशेष मामलों में दबाव बनाने का कार्य करते हैं। वे कभी किसी स्कूल के शिक्षक पर, कभी किसी पटवारी पर, तो कभी किसी अस्पताल स्टाफ पर इस तरह आरोप लगाते हैं जैसे कि वे स्वयं न्यायाधीश हों। बाद में कई मामलों में ये साबित भी हो चुका है कि वीडियो का एक पक्षीय प्रस्तुतीकरण किया गया और वास्तविक स्थिति को नजरअंदाज किया गया।

❖ क्या है समाधान?

  • प्रेस मान्यता प्रणाली को सख्त किया जाए: सिर्फ उन्हीं चैनलों या पत्रकारों को सरकारी दफ्तरों में रिपोर्टिंग की अनुमति मिले, जो प्रेस काउंसिल या जनसंपर्क कार्यालय से मान्यता प्राप्त हों।
  • सोशल मीडिया पत्रकारिता गाइडलाइन बने: केंद्र और राज्य सरकार को यूट्यूब चैनलों व डिजिटल पत्रकारों के लिए स्पष्ट आचार संहिता और जवाबदेही तय करनी चाहिए।
  • अधिकारियों को सुरक्षा मिले: अधिकारी व कर्मचारी यदि किसी यूट्यूब चैनल के सवालों से परेशान हों तो उन्हें रिपोर्ट करने की सुविधा और संरक्षण मिले।
  • जन जागरूकता आवश्यक: जनता को यह समझना जरूरी है कि हर कैमरे वाला व्यक्ति पत्रकार नहीं होता। सच और अफवाह के बीच अंतर करने की जिम्मेदारी भी नागरिकों की है।यूट्यूब एक शक्तिशाली मंच है, लेकिन इसका दुरुपयोग लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक हो सकता है। पत्रकारिता की स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन उसके साथ उत्तरदायित्व और नैतिकता भी अनिवार्य है। यदि इस बेलगाम डिजिटल मीडिया को समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले समय में यह समाज, प्रशासन और लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है। अब वक्त आ गया है कि शासन-प्रशासन ऐसे मामलों में पहल कर, सख्त नियम लागू करे ताकि सही पत्रकारिता को बढ़ावा मिले और अफवाहबाजों पर लगाम कसी जा सके।
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