फर्जी नामों से एनजीओ, परिषद और समाचार पत्र चला रहे लोग कर रहे जनता को गुमराह"राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन", "जन आयोग परिषद", "भारतीय शिक्षा निरीक्षण समिति", "लोक अदालत समाचार", "राष्ट्र सेवा कार्यालय", जैसे नाम आमतौर पर सरकारी संस्थाओं की तरह प्रतीत होते हैं।
शेख अफरोज हरदा, 28 जुलाई।देश में जहां एक ओर पारदर्शिता और सुशासन को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ चालाक तत्व नियमों की आड़ में ऐसी संस्थाएं, संगठन और समाचार माध्यम खड़े कर रहे हैं, जो नाम के स्तर पर जनता को भ्रमित करते हैं। इन दिनों कुछ एनजीओ, परिषदें और समाचार पत्र ऐसे नामों से पंजीयन करवा रहे हैं, जो भारत सरकार की संस्थाओं, आयोगों, संवैधानिक पदों या सरकारी समितियों से मेल खाते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल जनमानस को गुमराह करने वाली है, बल्कि यह अवैध लाभ कमाने का माध्यम बनती जा रही है।
इन संस्थाओं के नाम इतने अधिक मिलते-जुलते होते हैं कि एक सामान्य नागरिक को यह समझ पाना कठिन हो जाता है कि वह संस्था सरकारी है या निजी। "राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन", "जन आयोग परिषद", "भारतीय शिक्षा निरीक्षण समिति", "लोक अदालत समाचार", "राष्ट्र सेवा कार्यालय", जैसे नाम आमतौर पर सरकारी संस्थाओं की तरह प्रतीत होते हैं। इनका उद्देश्य स्पष्ट नहीं होता, लेकिन इनके माध्यम से फर्जी आईडी, नियुक्ति पत्र, प्रतिनिधि कार्ड, समाचार संवाददाता कार्ड आदि बनाए जाते हैं, जिन्हें उपयोग कर भोली-भाली जनता से पैसा वसूला जाता है या प्रभाव जमाया जाता है।
नाम के पीछे भ्रम फैलाने की साजिश
कुछ संस्थाएं जानबूझकर अपने नाम में ‘राष्ट्रीय’, ‘भारत’, ‘सरकारी’, ‘आयोग’, ‘परिषद’, ‘जनता’, ‘लोक’, ‘संविधान’, ‘मानवाधिकार’, ‘रक्षा’, ‘सेवा’ जैसे शब्दों का उपयोग करती हैं ताकि उनकी पहचान गंभीर, वैध और अधिकृत संस्था की तरह हो। जबकि असल में वे महज निजी पंजीकृत संगठन होते हैं जिनका सरकार या संवैधानिक पदों से कोई वास्ता नहीं होता। कुछ संस्थाएं तो बाकायदा अपने नाम के आगे "भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त" जैसा झूठा दावा भी करती हैं।
इनका उद्देश्य आम नागरिकों से संपर्क स्थापित कर खुद को अधिकृत अधिकारी, संवाददाता, मानवाधिकार निरीक्षक, बाल कल्याण प्रतिनिधि या RTI अधिकारी जैसे पदों पर नियुक्त बताना होता है। फिर वे किसी छोटे अधिकारी को डरा-धमका कर प्रभाव जमाते हैं या ग्रामीण क्षेत्र में सामाजिक कार्य के नाम पर चंदा वसूलते हैं।
फर्जी नियुक्तियों का चलन
इन संस्थाओं द्वारा फर्जी नियुक्ति पत्र और आईडी कार्ड जारी करना आम हो गया है। ये संगठन युवाओं को संवाददाता, जिला प्रभारी, निरीक्षक जैसे नामों से नियुक्त करते हैं और बदले में रजिस्ट्रेशन फीस, आईडी फीस, ड्रेस कोड चार्ज, ट्रेनिंग चार्ज जैसे नामों से पैसे ऐंठते हैं। कई बार ऐसे लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकारियों से जानकारी लेने या अपने पद का दुरुपयोग करने की छूट भी दी जाती है।
इन नकली कार्ड्स और पदों का उपयोग कर कुछ लोग सरकारी कार्यालयों में पहुँच जाते हैं और अधिकारियों पर सवाल उठाकर धमकाने लगते हैं। अधिकारी कई बार इनसे परेशान होकर गलत सूचना तक साझा कर देते हैं या उनकी बातों में आकर व्यक्तिगत लाभ पहुंचा देते हैं।
समाचार पत्र या पोर्टल की आड़ में गड़बड़ियां
इसी तरह कुछ लोग समाचार पत्र, न्यूज पोर्टल या न्यूज चैनल के नाम से पंजीयन करवा लेते हैं और उसके नाम पर फर्जी संवाददाता कार्ड जारी कर देते हैं। ये कार्ड लेकर कोई भी व्यक्ति "पत्रकार" बन जाता है और अपने प्रभाव का दुरुपयोग करता है। इससे ना केवल असली पत्रकारों की छवि धूमिल होती है, बल्कि पत्रकारिता जैसी गंभीर विधा को भी नुकसान पहुंचता है।
आज के डिजिटल युग में वेबसाइट बनाना, एक डिजिटल न्यूज पोर्टल बनाना, और किसी नाम से "e-पत्रिका" चालू करना बहुत आसान हो गया है। लेकिन इसके माध्यम से कई लोग स्वार्थसिद्धि में लगे हैं। कुछ तो सोशल मीडिया पर ‘राष्ट्रीय न्यूज चैनल’ जैसे नामों से पेज बनाकर भ्रम फैलाते हैं।
नियमों की अनदेखी, प्रशासन की चुप्पी
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस पूरे मामले में स्थानीय प्रशासन और पंजीयन कार्यालयों की निष्क्रियता भी कम जिम्मेदार नहीं है। फर्जी नामों से संगठन या संस्थाएं कैसे रजिस्टर हो जाती हैं? क्यों कोई अधिकारी इन नामों को जांच कर स्वीकृति नहीं देता? इस पर कभी गंभीरता से मंथन नहीं किया गया।
भारतीय समाज में जब कोई संस्था "राष्ट्रीय", "आयोग", "परिषद" जैसे नाम से सामने आती है तो जनता स्वाभाविक रूप से उसे सरकारी समझ बैठती है और आंख मूंद कर विश्वास कर लेती है। यही भरोसा इन फर्जी संगठनों का सबसे बड़ा हथियार बन जाता है।
क्या कहता है कानून?
भारतीय संविधान या किसी अधिनियम के तहत कोई भी व्यक्ति या संस्था भारत सरकार, राज्य सरकार, या संवैधानिक निकायों के नाम से मिलते-जुलते नाम नहीं रख सकती। यह जनहित में धोखा, दुरुपयोग और अपराध की श्रेणी में आता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 171 व 416 के तहत गलत पद दिखाकर धोखा देने पर सजा का प्रावधान है। इसके अलावा फर्जी संस्थाओं द्वारा पदनामों का दुरुपयोग करना Information Technology Act, 2000 व Trademark Act के तहत भी दंडनीय अपराध है।
जनता को जागरूक करने की जरूरत
आज समय की मांग है कि ग्रामीण व शहरी क्षेत्र के आम नागरिकों को यह सिखाया जाए कि वे किसी संस्था पर आँख मूंदकर विश्वास न करें। हर संस्था की असली पंजीयन स्थिति, वेबसाइट, कार्यालय पता, जिम्मेदार पदाधिकारी, और कार्यक्षेत्र की जानकारी Google या सरकारी पोर्टल पर जांच सकते हैं। कोई भी संस्था यदि सरकारी होने का दावा करती है तो उसका वैध प्रमाण मांगा जाना चाहिए।
प्रशासनिक सख्ती की जरूरत
फर्जी नामों से चल रही इन संस्थाओं और संगठनों पर लगाम कसने के लिए जिला प्रशासन, पुलिस विभाग, और पंजीयन प्राधिकारी को मिलकर कार्रवाई करनी होगी। पंजीकृत संस्थाओं के नामों की समय-समय पर समीक्षा, जांच व सत्यापन होना चाहिए। साथ ही फर्जी ID या नियुक्ति पत्र जारी करने वाली संस्थाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उनके संचालन पर रोक लगानी चाहिए।
फर्जी नामों से चलने वाली एनजीओ, समाचार पत्र या परिषदें ना केवल जनता के विश्वास को तोड़ रही हैं बल्कि शासन-प्रशासन के लिए चुनौती बनती जा रही हैं। यदि इन पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो यह प्रवृत्ति और भी अधिक गहराएगी और समाज में भ्रम की स्थिति उत्पन्न करेगी। प्रशासन, मीडिया संस्थाएं और जागरूक नागरिकों को मिलकर इनकी पहचान कर कार्रवाई की दिशा में ठोस कदम उठाना होगा।