जनता अब एक ही सवाल पूछ रही है—जब अधिकारी अपने दायित्वों से भाग रहे हैं, तो विकास की उम्मीद किससे की जाए?
सिराली नगर परिषद इन दिनों जनहित के कार्यों में भारी अनदेखी और जिम्मेदार अधिकारियों की मनमानी के चलते चर्चा में है। नगर परिषद में पदस्थ मुख्य नगरपालिका अधिकारी (सीएमओ) जयंत वर्मा और खिरकिया नगर परिषद से सिराली में प्रभारी उपयंत्री के रूप में नियुक्त श्री सोनी की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।सीएमओ जयंत वर्मा अक्सर मीटिंग्स या अन्य शासकीय कार्यों के नाम पर नगर से नदारद रहते हैं, जबकि उपयंत्री श्री सोनी सप्ताह में मात्र दो दिन उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। ऐसे में नगर की बुनियादी समस्याएं—जैसे जल निकासी, सड़क निर्माण, स्वच्छता, भवन अनुज्ञा, पट्टे वितरण और मजदूरों के भुगतान जैसी गंभीर जरूरतें—लंबित पड़ी हैं।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि जब इन समस्याओं को लेकर स्थानीय समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित होती हैं, तब भी ये अधिकारी किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी लेने या प्रतिक्रिया देने से कतराते हैं। वे न तो पत्रकारों के कॉल रिसीव करते हैं और न ही नगर की स्थिति की जानकारी देना उचित समझते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि जनता की परेशानियों को लेकर प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह संवेदनहीन हो चुका है।
नगर परिषद सिराली का इतिहास भी विवादों से भरा रहा है। चाहे वह प्रधानमंत्री आवास योजना में अनियमितताएं रही हों, पट्टों के वितरण में पक्षपात, सड़कों और नालियों के अधूरे निर्माण कार्य, लोकार्पण की खानापूर्ति या मजदूरों के हक की अनदेखी—हर मुद्दे पर परिषद की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में रही है।
इसके साथ ही फर्जी नियुक्तियों, बिना टेंडर के काम, तथा पार्षदों व नेताओं द्वारा नगर परिषद के खिलाफ खुले विरोध प्रदर्शन जैसी घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं। जनता की लगातार शिकायतों के बावजूद जब जिम्मेदार अधिकारी न तो नियमित रूप से उपस्थित रहते हैं और न ही किसी समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में काम करते हैं, तो यह स्थिति और भी गंभीर बन जाती है।
नगर परिषद कार्यालय में कई महीनों से फाइलें लंबित हैं, वार्डवासी अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए चक्कर काटने को मजबूर हैं। प्रशासन की इस अनदेखी का सबसे बड़ा नुकसान गरीब और मध्यमवर्गीय नागरिकों को उठाना पड़ रहा है, जिन्हें पट्टे, आवास, नाली-सड़क या मजदूरी भुगतान जैसे बुनियादी अधिकारों से भी वंचित होना पड़ रहा है।
स्थानीय प्रतिनिधियों का भी कहना है कि उन्होंने कई बार इन अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिए संबंधित उच्चाधिकारियों को सूचित किया, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। वहीं, नागरिकों का कहना है कि जब मीडिया में उनकी आवाज उठती है, तो उन्हें उम्मीद होती है कि प्रशासन हरकत में आएगा, परंतु अफसोस की बात यह है कि सीएमओ और उपयंत्री दोनों ही पत्रकारों को भी जवाब देना उचित नहीं समझते।
यह स्थिति न केवल प्रशासन की जवाबदेही पर प्रश्नचिन्ह लगाती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि नगर परिषद सिराली में आम जनता की समस्याएं प्राथमिकता में नहीं हैं। यदि जिला प्रशासन और शासन स्तर से शीघ्र हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो नगर में प्रशासनिक अराजकता और जनाक्रोश और अधिक बढ़ सकता है।