नगर परिषद सिराली की 16 दुकानों का किराया एक वर्ष से नहीं वसूल, गरीबों से जबरन वसूली
शेख अफरोज | सिराली, 28 जुलाई।
नगर परिषद सिराली की कार्यप्रणाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। एक ओर परिषद की 16 से अधिक दुकानों का वार्षिक किराया पिछले एक वर्ष से नहीं वसूल किया गया है, तो वहीं दूसरी ओर गरीब मजदूर परिवारों से पीने के पानी के नल कनेक्शन के नाम पर ₹3500 तक की भारी-भरकम राशि वसूली जा रही है। यह स्थिति नगर परिषद की दोहरी नीतियों और पक्षपातपूर्ण रवैये को उजागर करती है।
राजस्व हानि की अनदेखी
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, नगर परिषद सिराली द्वारा नगर क्षेत्र में बनी 16 दुकानों को किराए पर दिया गया था। लेकिन इन दुकानों से पिछले एक वर्ष से किराया नहीं वसूला गया है। प्रत्येक दुकान से औसतन ₹1000-1500 मासिक किराया मिलने की संभावना थी, ऐसे में परिषद को सालभर में लाखों रुपये की राजस्व हानि हो चुकी है। बावजूद इसके न तो किसी दुकानदार को नोटिस भेजा गया और न ही वसूली के कोई प्रयास किए गए।
स्थानीय पार्षदों और जागरूक नागरिकों ने भी इस मुद्दे को कई बार बैठक में उठाया, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने हर बार इसे नजरअंदाज कर दिया। यह स्थिति न सिर्फ वित्तीय अनुशासन की कमी को दर्शाती है बल्कि यह भी संकेत देती है कि कुछ चुनिंदा लोगों को परिषद द्वारा संरक्षण प्रदान किया जा रहा है।
गरीबों पर कठोरता, नल कनेक्शन में भारी शुल्क
वहीं दूसरी ओर, नगर परिषद द्वारा सामान्य नागरिकों, विशेषकर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले गरीब परिवारों से नल कनेक्शन के नाम पर ₹3000 से ₹3500 तक की वसूली की जा रही है। यह राशि उन परिवारों के लिए बहुत अधिक है जो रोज कुआं खोदकर पानी पीने जैसे हालात में जीवन यापन कर रहे हैं।
कई परिवारों ने बताया कि जब उन्होंने नल कनेक्शन के लिए आवेदन किया तो उन्हें स्पष्ट रूप से कहा गया कि बिना शुल्क जमा किए उन्हें कनेक्शन नहीं मिलेगा। यहां तक कि जिनके घरों में पहले से ही नल कनेक्शन की लाइन बिछी हुई थी, उनसे भी नई दरों के अनुसार राशि मांगी गई।
न्याय की दोहरी परिभाषा?
नगर परिषद का यह रवैया शहर में दो तरह की नीतियों को दर्शाता है — एक तरफ प्रभावशाली या पहुंच वाले लोगों की दुकानों से किराया नहीं लिया जा रहा, जबकि दूसरी ओर गरीबों से जरूरी सेवा के लिए जबरन शुल्क वसूला जा रहा है। यह स्थिति पारदर्शिता, जवाबदेही और जनसेवा के उस उद्देश्य के खिलाफ जाती है, जिसे लेकर नगरीय निकाय काम करते हैं।
स्थानीय लोगों में रोष, जांच की मांग
इस अन्यायपूर्ण व्यवहार से आक्रोशित होकर स्थानीय सामाजिक संगठनों और नागरिकों ने नगर परिषद की नीतियों की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि अगर नगर परिषद को वसूली करनी ही है तो पहले उन दुकानों से किराया वसूला जाए जो वर्षों से बिना भुगतान के व्यवसाय कर रही हैं।
अधिकारियों की चुप्पी, पार्षद भी असहाय
जब नगर परिषद के अधिकारियों से इस विषय में जानकारी लेने की कोशिश की गई तो कोई भी स्पष्ट जवाब नहीं दे सका। सीएमओ से संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि इस पर विचार किया जा रहा है और जल्द ही निर्णय लिया जाएगा। वहीं कुछ पार्षदों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि परिषद की नीतियों में लगातार पक्षपात हो रहा है और अधिकारी किसी की नहीं सुनते।सिराली नगर परिषद की यह दोहरी नीति — एक ओर दुकानदारों से किराया न लेना और दूसरी ओर गरीब मजदूरों से जल शुल्क वसूलना — जनता के साथ अन्याय है। यदि समय रहते पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की गई, तो यह व्यवस्था भ्रष्टाचार और जनविरोधी निर्णयों की दलदल में और गहरे उतरती जाएगी। जनता ने मांग की है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।