प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को अपने ही शिक्षकों के पास ट्यूशन जाना बना मजबूरी,शिक्षा माफियाओं का ट्यूशन के नाम पर आतंक ,

 


प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को अपने ही शिक्षकों के पास ट्यूशन जाना बना मजबूरी,शिक्षा माफियाओं का ट्यूशन के नाम पर आतंक , चाहते तो स्कूलों मे 6 से 8 घंटे का समय मिलता है, सब कुछ वही पर बच्चों को बता और पढ़ सकते थे,सीखा सकले थे। पर ऐसा क्या रहता है कि उन्ही बच्चों को अपनी ही स्कूल के शिक्षको के घर टयूशन जाना मजबूरी हो जाती है। चाहते तो स्वयं स्कूल संचालक ऐसे कृत्य के लिए अपनी संस्था के शिक्षकों पर रोक लगा सकते थे ,परन्तु ऐसा नही किया जाता है। "कारण समझ सकते है....*


हरदा/जिले से लेकर तहसील और ब्लाक से लेकर गांवो तक  ,खूब फल-फूल रहा प्राइवेट ट्यूशन का कारोबार, बच्चो का स्कूल तो जून- जुलाई मे चालू होता है ,परन्तु ट्यूशन अप्रैल-मई में ही शुरु कर दी जाती है। प्राइवेट स्कूलों में हाल यह है ,कि प्राइवेट स्कूलों के शिक्षको द्वारा अपने  विषय का ट्यूशन पढ़ने के लिए, अपनी ही स्कूलों के बच्चों का बाध्य किया जाता है। सभी का कारण ज्यादा तर सामान्य ही रहा कुछ प्राइवेट स्कूलों में।पढ़ने छात्र-छात्राओ और उनके पालको ने नाम ना छापने की शर्त पर  बताया कि आधिकांश शिक्षको द्वारा बोर्ड परीक्षा में प्रेक्टिकल में कम मार्क्स देने और लोकल परीक्षाओं में फेल करने का डर शिक्षको द्वारा बच्चो को दिखाते हैं 

*तो क्या स्कूल संचालको की मिलीभगत से चल रहा यह खेल...?*

 इसमें स्कूलों के संचालकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है ?अन्यथा अपनी ही स्कूली के बच्चों को अपनी ही स्कूल के शिक्षको के घर पर टियूशन पढ़ने  की आवश्यकता पढ़ने लगी।अब सवाल यह शिक्षक टीयूशन में ऐसे क्या पढ़ा देते हैं वो स्कूल में नही पढ़ा पाते हैं ?शिक्षक चाहते तो स्कूलों मे 6 से 8 घंटे का समय मिलता है, सब कुछ वही पर बच्चों को बता और पढ़ सकते थे,सीखा सकले थे। पर ऐसा क्या रहता है कि उन्ही बच्चों को अपनी ही स्कूल के शिक्षको के घर टयूशन जाना मजबूरी हो जाती है। चाहते तो स्वयं स्कूल संचालक ऐसे कृत्य के लिए अपनी संस्था के शिक्षकों पर रोक लगा सकते थे ,परन्तु ऐसा नही किया जाता है। "कारण समझ सकते है....।

एक कमरा किराये कर लेकर एक बोर्ड लगाया जाता है और टीयूशन प्रारम्भ

,ना कोई रजिस्ट्रेशन ना शौचालय ना पीने की व्यवस्था ,ना पार्किंग ना बैठने के लिए फर्नीचर ना सुरक्षा के कोई इन्तजाम होते है। बस बच्चे आते है एक घंटे पढ़ते है और बस हो गया काम,फीस के नाम पर या तो 4 से 5 हजार प्रति विषय या ठेका कर लिया जाता है ।जिसमे भी बच्चो को ना कोई रसीद दी जाती है।लाखों का खेल बिना किसी लिखा पड़ी के बिंदास चल रहा है। इसमे सबसे अधिक नुकसान होला है उन गरीब बच्चों का जिनके पालक

अच्छी शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों में

अपने बच्चो को दाखिला दिलाते है और जैसे तैसे करक स्कूलों की फीस भरते है।

वे बच्चे टियूशन नही जा पाते या किसी पहचान वाले अन्य शिक्षक जो 200-300रु महीना में पढ़ा देते हैं इनके पास जाकर पढ़ते हैं तो दूसरे शिक्षक के पास ट्यूशन जाने के कारण उन्हें या तो मार्क्स कम दिए जाते हैं या फेल ही कर दिया जाता है।कोई भी बच्चा जिसे स्कूल में ही समुचित शिक्षा मिल जाऐ वो क्यो ट्यूशन जाने को मजबूर होगा?क्यो पलकों पर डबल पैसों का भार आएगा ।कई बच्चो को तो स्कूल की छुट्टी होने के बाद या सुबहा जल्दी 10 से 15 कि. मी. अपने साधनों से जाकर ट्यूशन पढ़ने को मजबूर होते हैं।बच्चो को बताया जाता है कि बिना टियूशन के अच्छे मार्क्स नही ला सकते,इस तरह किसी का भी ध्यान नही जा रहा है और यह धन्धा दिनों दिन खूब फल फूल रहा है...*


हरदा/जिले से लेकर तहसील और ब्लाक से लेकर गांवो तक  ,खूब फल-फूल रहा प्राइवेट ट्यूशन का कारोबार, बच्चो का स्कूल तो जून- जुलाई मे चालू होता है ,परन्तु ट्यूशन अप्रैल-मई में ही शुरु कर दी जाती है। प्राइवेट स्कूलों में हाल यह है ,कि प्राइवेट स्कूलों के शिक्षको द्वारा अपने  विषय का ट्यूशन पढ़ने के लिए, अपनी ही स्कूलों के बच्चों का बाध्य किया जाता है। सभी का कारण ज्यादा तर सामान्य ही रहा कुछ प्राइवेट स्कूलों में।पढ़ने छात्र-छात्राओ और उनके पालको ने नाम ना छापने की शर्त पर  बताया कि आधिकांश शिक्षको द्वारा बोर्ड परीक्षा में प्रेक्टिकल में कम मार्क्स देने और लोकल परीक्षाओं में फेल करने का डर शिक्षको द्वारा बच्चो को दिखाते हैं 


*तो क्या स्कूल संचालको की मिलीभगत से चल रहा यह खेल...?*

 इसमें स्कूलों के संचालकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है ?अन्यथा अपनी ही स्कूली के बच्चों को अपनी ही स्कूल के शिक्षको के घर पर टियूशन पढ़ने  की आवश्यकता पढ़ने लगी।अब सवाल यह शिक्षक टीयूशन में ऐसे क्या पढ़ा देते हैं वो स्कूल में नही पढ़ा पाते हैं ?शिक्षक चाहते तो स्कूलों मे 6 से 8 घंटे का समय मिलता है, सब कुछ वही पर बच्चों को बता और पढ़ सकते थे,सीखा सकले थे। पर ऐसा क्या रहता है कि उन्ही बच्चों को अपनी ही स्कूल के शिक्षको के घर टयूशन जाना मजबूरी हो जाती है। चाहते तो स्वयं स्कूल संचालक ऐसे कृत्य के लिए अपनी संस्था के शिक्षकों पर रोक लगा सकते थे ,परन्तु ऐसा नही किया जाता है। "कारण समझ सकते है....।

एक कमरा किराये कर लेकर एक बोर्ड लगाया जाता है और टीयूशन प्रारम्भ

,ना कोई रजिस्ट्रेशन ना शौचालय ना पीने की व्यवस्था ,ना पार्किंग ना बैठने के लिए फर्नीचर ना सुरक्षा के कोई इन्तजाम होते है। बस बच्चे आते है एक घंटे पढ़ते है और बस हो गया काम,फीस के नाम पर या तो 4 से 5 हजार प्रति विषय या ठेका कर लिया जाता है ।जिसमे भी बच्चो को ना कोई रसीद दी जाती है।लाखों का खेल बिना किसी लिखा पड़ी के बिंदास चल रहा है। इसमे सबसे अधिक नुकसान होला है उन गरीब बच्चों का जिनके पालक

अच्छी शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों में

अपने बच्चो को दाखिला दिलाते है और जैसे तैसे करक स्कूलों की फीस भरते है।

वे बच्चे टियूशन नही जा पाते या किसी पहचान वाले अन्य शिक्षक जो 200-300रु महीना में पढ़ा देते हैं इनके पास जाकर पढ़ते हैं तो दूसरे शिक्षक के पास ट्यूशन जाने के कारण उन्हें या तो मार्क्स कम दिए जाते हैं या फेल ही कर दिया जाता है।कोई भी बच्चा जिसे स्कूल में ही समुचित शिक्षा मिल जाऐ वो क्यो ट्यूशन जाने को मजबूर होगा?क्यो पलकों पर डबल पैसों का भार आएगा ।कई बच्चो को तो स्कूल की छुट्टी होने के बाद या सुबहा जल्दी 10 से 15 कि. मी. अपने साधनों से जाकर ट्यूशन पढ़ने को मजबूर होते हैं।बच्चो को बताया जाता है कि बिना टियूशन के अच्छे मार्क्स नही ला सकते,इस तरह किसी का भी ध्यान नही जा रहा है और यह धन्धा दिनों दिन खूब फल फूल रहा है।