तरुण गौर सिराली : /ग्राम पीपल्या में चल रही सार्वजनिक संगीतमय श्री राम कथा के छटवे दिवस पर जानकी कुण्ड चित्रकूट से पधारी राष्ट्रीय प्रवक्ता मानस मणि कोकिला साध्वी नीलम गायत्री ने राम विवाह की कथा सुनाई। समिति द्वारा आयोजित रामकथा के दौरान राम-सीता विवाह प्रसंग सुनकर श्रद्धालुओं ने जयकारे लगाए। श्रीराम सीता के विवाह की कथा सुनाते हुए बताया कि राम राजा दशरथ के घर जन्मे थे और सीता राजा जनक की पुत्री थी।मान्यता है कि सीता का जन्म धरती से हुआ था। राजा जनक हल चला रहे थे उस समय उन्हें एक नन्ही सी बच्ची मिली थी जिसका नाम उन्होंने सीता रखा था। सीता जी को जनकनंदिनी के नाम से भी पुकारा जाता है।राजा जनक के दरबार में एक बार सीता ने शिव जी का धनुष उठा लिया था जिसे परशुराम के अतिरिक्त और कोई नहीं उठा पाता था। राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो भी शिव का धनुष उठा पाएगा सीता का विवाह उसी से होगा।विवाह योग्य होने पर राजा जनक ने सीता के स्वयंवर के लिए घोषणाएं कर दी गई।
मिथिला नगरी में महाराज जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए स्वयंवर रखा था।जिसमें देश देश के राजा शामिल हुए थे।मंत्री द्वारा महाराज जनक की प्रतिज्ञा सुनाई गई कि जो भी इस शिव धनुष को तोड़ेगा सीता उसी के गले में जयमाला पहन आएंगी।सभी राजाओं ने धनुष को तोड़ने के लिए अथक प्रयास किया किंतु कोई तिल मात्र भी हिला नहीं सका।इसे देख महाराज जनक अत्यंत व्याकुल हुए और क्रोधबस सभी राजाओं को यथा स्थान आए वहां जाने का आदेश कर दिए और कहा कि यह पृथ्वी वीरों से खाली है अब मेरी पुत्री से विवाह कौन करेगा किंतु उसी सभा में बैठे गुरु विश्वामित्र एवं अयोध्या नरेश राम एवं लक्ष्मण भी थे महाराज जनक के इन वचनों को सुन लक्ष्मण अत्यंत क्रोधित हुए और महाराज जनक को जमकर खरी खोटी सुनाई और कहा कि यह कटु वचन उस सभा में नहीं बोले जाते जहां पर रघुवंशी में से कोई भी एक वीर पुरुष बैठा हो।महाराज आपने यह कैसे कह दिया कि यह पृथ्वी वीरों से खाली है आप कहो तो यह धनुष क्या अभी पृथ्वी को गेंद की तरह उठाकर उलट पुलट कर दूँ लेकिन इस सभा में मेरे आराध्य प्रभु श्री रामचंद्र जी बैठे हैं आपको ऐसे वचन कदापि शोभा नहीं देते तब महाराज जनक को अपने वचनों पर पछतावा हुआ और गुरु विश्वामित्र ने प्रभु श्री राम को शुभ समय जानकर धनुष तोड़ने के लिए आशीर्वाद दिया। गुरु का आशीर्वाद पाकर राम ने शिव धनुष को तिनके के सामान उठाकर तोड़ दिया।धनुष के टूटते ही पुष्प वर्षा होने लगी,मंगल गीत गाए जाने लगे,देश देश के आए भूपाल राजा भी एकटक देखते रह गए।जनक पुत्री सीता ने श्रीराम के गले में जयमाला पहनाकर अपना वर स्वीकार किया।
भारतीय समाज में राम और सीता को आदर्श दंपत्ति का उदाहरण समझा जाता है। राम सीता का जीवन प्रेम, आदर्श, समर्पण और मूल्यों को प्रदर्शित करता है। इसके बाद धूमधाम से सीता व राम का विवाह हुआ। माता सीता ने जैसे ही प्रभु श्रीराम को वर माला डाली वैसे ही देवता फूलों की वर्षा करने लगे।समिति के द्वारा भगवान श्री राम की झांकी बनाई गई इस दौरान मातृ शक्ति एवं सभी श्रद्धालुओं ने भगवान श्री रामचंद्र जी के चरण पखार कर ग्राम की सुख समृद्धि की कामना की। इस दौरान दर्जनों गांवों के सैकड़ो श्रद्धालुओं ने श्री राम कथा का रसपान किया। सीता-राम विवाह कथा सुन भाव-विभोर हुए श्रोता,गुरु के आशिर्बाद से स्वयंम्बर में श्रीराम ने धनुष तोड़कर जनक के संताप का हरण किया।नम आंखों से की माँ सीता की विदाई।