शेख अफरोज सिराली /चाहे केंद्र और राज्य सरकार आदिवासी छात्राओं के भविष्य को संवारने के लिए कितने ही प्रयास करें परंतु धरातल पर इसको लागू करने की जिम्मेदारी शासन ने जिन कंधों पर दे रखी है वह अपने काम में किस तरह लापरवाही करते हैं और अपने काम को लेकर कितने गंभीर हैं इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आदिवासी कन्या छात्रावास बनके तैयार भी हो लेकिन छात्राओं के उपयोग करने से पहले ही जर्जर और खंडार भवन में तब्दील होती देखी जा रही है
क्या है मामला - आदिवासी कन्या छात्रवास सिराली के लिए विभाग के बताया अनुसार वर्ष 2008 -09 में लगभग 40 लाख रु स्वकृत हुए थे जिसमें निर्माण एजेंसी कृषि विपरण मंडी भोपाल थी 50 सीटर बालिका छात्रावास था दिसंबर 2014 में बनकर तैयार भी हो गया और निर्माण एजेंसी के द्वारा विभाग में पदस्थ एसके शर्मा को हैंडोवर भी कर दिया गया लेकिन विभाग के जिम्मेदारों ने यूके लापरवाही के चलते या किसी अन्य संस्था को लाभ पहुंचाने की मंशा से छात्राओं को इस नव निर्माण छात्रवास बिल्डिंग में शिफ्ट करना मुनासिब नहीं समझा जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो विभाग द्वारा बताया गया है कि छात्रावास के चारों तरफ वॉलीबॉल नहीं है जिससे कि सुरक्षा की दृष्टि से बालिकाओं को मां शिफ्ट नहीं किया गया जबकि अगर देखा जाए तो छात्रवास निर्माण के बाद भी लगभग ₹18लाख रुपए खाते में बचे थे अगर विभाग और निर्माण एजेंसी चाहती तो इस 18 लाख की राशि से छात्रवास के चारों तरफ तार फेंसिंग जेसी अस्थाई तौर से भवन को चालू करने के लिए व्यवस्था की जा सकती थी लेकिन विभाग द्वारा ऐसा कुछ नहीं किया गया और बाद में चेक के माध्यम से यह 18 लाख वापस निर्माण एजेंसी के खाते से विभाग द्वारा ले लिया लंबे समय तक भवन की देखरेख ना करने और उपयोग में न लेने के कारण आज छात्रवास भवन पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो गया है खिड़की दरवाजे साडे अज्ञात लोगों के द्वारा तोड़ दिए गए हैं बिजली का सारा सामान चोरी हो गया है पूरा भगवान खुर्द बुर्द दिखाई दे रहा है और खंडार की शक्ल अख्तियार कर लिया है अब ऐसे में शासन की इतनी बड़ी राशि के नष्ट हो जाने का जिम्मेदार कौन है
किराए के भवन मे रहते हैं बालिकाएं
अब ऐसी स्थिति में आसपास की बालिकाएं जो शिक्षा ग्रहण करने में रुचि रखती हैं और जिनके परिवार अपने बालिकाओं को पढ़ाना चाहते हैं उनके पास विभाग द्वारा स्थाई तौर से बने भवन की व्यवस्था ना होने के कारण गांव के ही एक सेठ के भवन में करा दे कर दे रही है जिसका किराया लगभग ₹10000 प्रति माह बताया जा रहा है ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब 2014 में बनकर तैयार हो गया था और तब से लेकर अब तक प्रतिमाह ₹10000 इस किराए के भवन का किराया दिया जा रहा है तो लगभग इन 5 वर्षों में 5 से6 लाख रुविभाग किराय दे चुके है अब ऐसे में 18 लाख पहले के और 5 से 6 लाख रु किराया जो विभाग ने दिया इतने में तो लगभग बाउंड्री बन ही जाती क्योकि विभाग के अनुसार बताया गया क्या उनके द्वारा भवन की मरमत के लिए एक आर ई एस विभाग द्वारा स्टीमेट तैयार कर शासन से राशि की मांग की गई है जिस में लगभग स्टीमेट 24 लाख रु खर्च बता गया है अब ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां किस प्रकार से काम चल रहा है कि पहले तो राशि कम होने का बहाना बनाया गया और उसके बाद लगभग आधी राशि का भुगतान किराए के रूप में किया गया और अब जबकि भवन जर्जर हो गया है तो पुनः शासन से राशि की मांग कर उसको सही करने की बात कही जा रही।वही अगर खर्च की बात कही जाए तो आदिवासी बालक बालिकाओं की शिक्षा पर शासन प्रतिमाह बालिकाओ के लिए 12.70 रु और बालको के लिए 12.30 रु खर्च करती है ।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
विभाग की लापरवाही के चलते यह सब हुआ हम इस मामले को सरकार के संज्ञान में लाएंगे और दोषियों पर कार्रवाई कराने के लिए मांग करेंगे
उमेश पाटिल
मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग कांग्रेस प्रदेश सचिव
हमारे द्वारा इंजीनियर से छात्रावास का मौका मुआयना करवा दिया गया है शासन को राशि के लिए लिख दिया गया है राशि प्राप्त हो जाने के बाद जल्द से जल्द भवन को सही करा कर अप्रैल-मई नए सत्र से छात्राओं को मारने की उसका करा दी जाएगी
सीपी सोनी
जिला सयोजक आदिम जाति कल्याण विभाग हरदा।
शासन ने जो इतनी बड़ी राशि लगाकर वन तैयार कराया उसके बाद भी विभाग दूसरी जगह भी किराया दे रहा है तो इस प्रकार शासन की राशि का दुरुपयोग करना सही नहीं वही अब जो यह भवन खंडहर हो गया है और विभाग के द्वारा राशि की शासन से मांग की गई है यह बिल्कुल गलत है क्योंकि शासन इसकी राशि क्यों दें इसके लिए विभाग को जवाब देना होगा
करुणा शंकर शुक्ल
राष्ट्रीय नागरिकता अधिकार संगठन