इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन
वरिष्ठ पत्रकार हाजी रफ़ीक़ ख़ान का इंतक़ाल — खिरकिया ने खो दिया अपनी मिट्टी का अनमोल सिपाही
शेख अफरोज/हरदा जिले के खिरकिया क्षेत्र से एक बेहद दुःखद ख़बर सामने आई है।वरिष्ठ पत्रकार, समाजसेवी और खिरकिया की पहचान बन चुके हाजी रफ़ीक़ ख़ान साहब का 25 नवंबर की रात लगभग 11:00 बजे हृदयघात से इंतक़ाल हो गया।
अल्लाह तआला मरहूम की मग़फ़िरत फ़रमाए, उनके दरजात बुलंद करे और जन्नतुल फ़िरदौस में मक़ाम अता फ़रमाए। आमीन।
उनके इंतक़ाल की ख़बर ने पूरे हरदा जिले, खिरकिया क्षेत्र और पत्रकारिता जगत को शोक में डुबो दिया है। एक ऐसी शख्सियत, जिसने हर पल समाज के लिए, जनता के लिए, और सच्चाई के लिए अपनी कलम और आवाज़ उठाई—आज वह आवाज़ हमेशा के लिए ख़ामोश हो गई।
खिरकिया की मिट्टी से उठी एक रोशन शख्सियत
हरदा जिले के खिरकिया विकासखंड की साधारण मिट्टी से उभरे हाजी रफ़ीक़ ख़ान आज वह नाम बन चुके थे जिनकी पहचान सीमाओं से परे थी। वह न केवल एक पत्रकार थे, बल्कि समाज की धड़कन, जनता की आवाज़ और कमजोर तबकों की उम्मीद थे।
उनकी पत्रकारिता ईमानदार, निष्पक्ष और बेबाक थी। सच बोलने और सच लिखने में उन्होंने कभी किसी का डर, दबाव या रिश्वत स्वीकार नहीं की। यही कारण था कि उनके जीवनकाल में उन्हें जो सम्मान, प्यार और भरोसा मिला—वह जिले के किसी और पत्रकार को आज तक हासिल नहीं हुआ
पत्रकारिता की शुरुआत — जो आज इतिहास बन चुकी है
हाजी रफ़ीक़ ख़ान ने पत्रकारिता की शुरुआत करीब दो तीन दशकों पहले, सन् 1995-2000 से पहले, तब की जब न सोशल मीडिया था और न डिजिटल प्लेटफॉर्म।
उस दौर में खबरें जुटाना, सत्यापन करना और उसे अखबार तक पहुँचाना अत्यंत कठिन कार्य था, लेकिन उन्होंने इसे ही अपना जीवनधर्म बनाया।
वे पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल पर दूर-दूर तक घूमते, घटनास्थलों पर सबसे पहले पहुँचते और सच्चाई को जनता तक पहुँचाने का जोखिम भरा कार्य करते थे।
एक दर्जन से अधिक समाचार पत्रों के प्रतिनिधि
हाजी रफ़ीक़ ख़ान ने एक नहीं, बल्कि भोपाल सहित प्रदेश भर के एक दर्जन से अधिक बड़े समाचार पत्रों में ब्यूरो प्रतिनिधि और संवाददाता के रूप में अपनी सेवाएँ दीं।
उनकी खबरें हमेशा तथ्यपरक, संतुलित और जनहित पर आधारित होती थीं।
उन्होंने कई टीवी न्यूज़ चैनलों में भी काम किया, परंतु चैनलों के शोरगुल, राजनीति और TRP आधारित पत्रकारिता से उन्हें संतोष नहीं मिला।
उनका दिल हमेशा प्रिंट मीडिया में ही लगा रहा, जहाँ सच लिखने की स्वतंत्रता थी।
जनता और शासन के बीच सेतु का काम
उनकी पत्रकारिता केवल खबरें लिखने तक सीमित नहीं रही।
वे क्षेत्र की समस्याओं को शासन तक पहुँचाने, अधिकारियों को जनहित के मुद्दों की जानकारी देने और सरकारी योजनाओं के सही लाभार्थियों तक संदेश पहुँचाने में सेतु का कार्य करते थे।
उनकी एक रिपोर्ट पर कई बार जांच बैठी, अधिकारियों का ध्यान गया और आम जनता को राहत मिली।
धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में सदैव अग्रणी
हाजी रफ़ीक़ ख़ान सिर्फ पत्रकार नहीं, बल्कि खिरकिया और हरदा जिले के हर धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय कार्यों का अभिन्न हिस्सा थे।
वे मस्जिदों के प्रोग्राम हों, मदरसों के कार्य, गरीबों की मदद, सामाजिक कार्यक्रम, या किसी भी समाज की खुशी–गम—हर जगह सबसे आगे मौजूद रहते थे।
उनकी लोकप्रियता किसी एक समाज तक सीमित नहीं थी।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, हर वर्ग के लोग उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते थे।
2006 का प्राणघातक हमला — सच लिखने की सज़ा
वर्ष 2006 में अवैध धंधों और अनियमित गतिविधियों पर लगातार खबरें प्रकाशित करने के कारण हाजी रफ़ीक़ ख़ान पर प्राणघातक हमला किया गया।
लेकिन इस घटना ने उनकी हिम्मत कम नहीं की—
बल्कि वह और ज्यादा बेबाक होकर सच लिखने लगे।
साहस, ईमानदारी और निडरता—ये तीन गुण उन्हें पत्रकारिता में विशिष्ट बनाते हैं।
नए पत्रकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत
आज जिले का शायद ही ऐसा कोई युवा पत्रकार होगा जिसने हाजी रफ़ीक़ ख़ान से प्रेरणा न ली हो।
वे नए पत्रकारों का उत्साह बढ़ाते, गलत राह पर चलने वालों को समझाते और सही पत्रकारिता करने वालों का हर तरह से मार्गदर्शन करते थे।
कई पत्रकार उन्हें अपने गुरु, मार्गदर्शक और गॉडफादर के रूप में मानते हैं।
प्रतिद्वंदियों में भी सम्मानित व्यक्तित्व
जहाँ प्रशंसा होती है, वहाँ प्रतिद्वंदी भी होते हैं।
परंतु हाजी रफ़ीक़ ख़ान के प्रतिद्वंदी भी यह मानते थे कि उनकी ईमानदारी, मेहनत और पत्रकारिता का स्तर बेहद ऊँचा है।
उनके व्यक्तित्व में ऐसी सादगी और व्यवहार में ऐसी मिठास थी कि विरोध करने वाला भी उनका मुरीद हो जाता था।
व्यक्तित्व की सादगी — एक असल इंसान की पहचान
हाजी रफ़ीक़ ख़ान का जीवन सादगी से भरा था।
उनका रहन-सहन बेहद साधारण, लेकिन दिल बेहद बड़ा था।
वे मिलनसार, विनम्र, सहयोगी और हमेशा समाज के लिए खड़े रहने वाले इंसान थे।
कोई भी व्यक्ति बिना झिझक उनके पास जा सकता था—
उनका दरवाज़ा हमेशा खुला रहता था।
अंतिम पड़ाव — दिल का दौरा और हमेशा के लिए जुदाई
25 नवंबर की रात लगभग 11:00 बजे
हाजी रफ़ीक़ ख़ान को अचानक हृदयघात हुआ और उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
उनकी मौत से केवल खिरकिया ही नहीं, बल्कि पूरा हरदा जिला, पत्रकारिता जगत और समाज का हर वर्ग गहरे सदमे में है।
आज खिरकिया ने अपना सच्चा सिपाही, जनता ने अपनी आवाज़ और पत्रकारिता ने अपना ईमानदार कलमकार खो दिया।
ऐसी शख्सियतें सदियों में पैदा होती हैं
हाजी रफ़ीक़ ख़ान सिर्फ एक पत्रकार नहीं थे—
वे एक संस्था, एक विचार और सच्चाई की मिसाल थे।
उनका जीवन संघर्ष, सेवा, साहस, सिद्धांत और सम्मान से भरा हुआ था।
उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसा मार्ग छोड़ दिया है जो आने वाले पत्रकारों के लिए प्रेरणा बनकर रहेगा।
अल्लाह तआला हाजी रफ़ीक़ ख़ान की मग़फ़िरत फ़रमाए,
उनकी क़ब्र को रोशन करे,
जन्नत में बुलंदियों वाला मक़ाम अता करे।
आमीन।
आपका छोटा भाई,शागिर्द
शेख अफरोज...

