दीपगांव कला में आंगनबाड़ी केंद्रों की अनदेखी, 150 बच्चों की सुरक्षा पर संकट
सरई में दर्ज मात्र 28 बच्चों के लिए मेन आंगनबाड़ी, जबकि दीपगांव कला की 1353 की आबादी पर सिर्फ एक केंद्र
शेख अफरोज सिराली / दीपगांव कला में आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक 1 की बदहाली और प्रशासन की उपेक्षा से ग्रामीणों में गहरा असंतोष है। गांव की कुल जनसंख्या 1,353 है और 0 से 6 वर्ष तक के लगभग 150 बच्चे आंगनबाड़ी सेवाओं के लिए पंजीकृत हैं। नियमानुसार, प्रति 1,000 जनसंख्या पर एक आंगनबाड़ी केंद्र की स्वीकृति दी जाती है, ऐसे में गांव में एक अतिरिक्त मेन या मिनी आंगनबाड़ी केंद्र की आवश्यकता स्पष्ट है।
इसके बावजूद, गांव का एकमात्र आंगनबाड़ी केंद्र लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां तक पहुंचने के लिए बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को सिराली-चारूवा मुख्य मार्ग पार करना पड़ता है। यह मार्ग अत्यधिक व्यस्त और खतरनाक है, जिससे हर दिन इन मासूमों की जान जोखिम में रहती है।
पीपल वाले टप्पर, बावड़ियां रोड, नहर और तालाब जैसे जोखिमभरे क्षेत्रों से होकर इन लाभार्थियों को आंगनबाड़ी पहुंचना पड़ता है। यह सभी क्षेत्र केंद्र क्रमांक 1 के अंतर्गत आते हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाएं यहां नदारद हैं।
गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आशा कलम ईमानदारी से सेवा दे रही हैं, परंतु संसाधनों की भारी कमी और प्रशासनिक लापरवाही के चलते सेवाओं का दायरा सीमित हो गया है। बताया जा रहा है कि कई बार स्थानीय प्रशासन को नए केंद्र की मांग को लेकर प्रस्ताव भेजे गए, लेकिन अब तक कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई।
सरई को मिली प्राथमिकता, जबकि दीपगांव उपेक्षित
ग्राम पंचायत कड़ोला राघो के अंतर्गत आने वाले गांव सरई में हाल ही में मिनी से मेन आंगनबाड़ी केंद्र का दर्जा दे दिया गया है। जबकि वहां की कुल जनसंख्या मात्र 290 है और आंगनबाड़ी में पंजीकृत बच्चों की संख्या केवल 28 है।
इस निर्णय को लेकर ग्रामीणों में आक्रोश है। उनका कहना है कि जब दीपगांव कला जैसे गांव, जहां बच्चों की संख्या पांच गुना से अधिक है, को नजरअंदाज किया जा रहा है, तो यह निर्णय पक्षपातपूर्ण और सवालों के घेरे में है।
सिर्फ दीपगांव ही नहीं, बल्कि भगवानपुरा और अजरूत रैयत जैसे गांवों में भी स्थिति गंभीर है। भगवानपुरा व अजरूत रैयत की संयुक्त जनसंख्या 1,510 है और यहां पंजीकृत बच्चों की संख्या 141 है। इन गांवों में या तो कोई आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है, या फिर उपलब्ध केंद्र इतनी दूरी पर हैं कि सेवाएं अप्रभावी हो जाती हैं।
भर्ती प्रक्रिया और निरीक्षण प्रणाली पर उठे सवाल
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना में नियमों की अनदेखी की जा रही है। जनसंख्या, भौगोलिक दूरी और बच्चों की संख्या जैसे मानकों को नजरअंदाज कर मनमर्जी से केंद्र खोले जा रहे हैं।
स्थानीय लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह “मुंह दिखाई” कार्यप्रणाली का नतीजा है, जिसमें प्रभावशाली या राजनीतिक रसूख वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि ज़रूरतमंद क्षेत्रों को अनदेखा किया जा रहा है?
निरीक्षण टीमों की निष्पक्षता और भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि ज़मीनी सच्चाई को दरकिनार कर, दस्तावेजी आंकड़ों के आधार पर निर्णय लिए जा रहे हैं।
ग्रामीणों की मांग: तत्काल हो कार्रवाई
ग्रामीणों की स्पष्ट मांग है कि दीपगांव कला, भगवानपुरा और अजरूत रैयत में जल्द से जल्द एक-एक मिनी या मेन आंगनबाड़ी केंद्र खोले जाएं। इससे बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को सुरक्षित, सुलभ और समय पर पोषण व स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकेंगी।
साथ ही, ग्रामीणों ने महिला एवं बाल विकास विभाग और स्थानीय प्रशासन से इस मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है। जब तक ज़रूरतमंद क्षेत्रों को प्राथमिकता नहीं दी जाती, तब तक जनता का प्रशासन पर भरोसा डगमगाता रहेगा।
(रिपोर्ट – विशेष संवाददाता, सिराली)