ग्राम पंचायत सावारी में सचिव की मनमानी से परेशान पंच, अभी तक नहीं मिला 1 भी माह का मानदेय, ग्रामीणों में आक्रोश,सचिव कि मनमानी के पीछे सीईओ के संरक्षण की बात आ रही सामने
शेख अफरोज सिराली (हरदा)।
खिरकिया जनपद के अंतर्गत ग्राम पंचायत सावारी इन दिनों पंचायत सचिव की मनमानी और प्रशासनिक लापरवाही के चलते विवादों में घिर गई है। ग्रामीणों और पंचों द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों के अनुसार, वर्तमान पंचवर्षीय कार्यकाल में नवनिर्वाचित 20 पंचों को आज दिनांक तक एक भी रुपये का मानदेय या भत्ता नहीं मिला है, जिससे उनमें भारी रोष व्याप्त है।
ग्रामीणों का आरोप है कि पंचायत के सचिव शेरसिंह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन ईमानदारी से नहीं कर रहे। आरोप है कि सचिव हमेशा शराब के नशे में धुत रहते हैं और पंचायत के कार्यों में गंभीरता नहीं दिखाते। पंचों द्वारा कई बार बैठक में और व्यक्तिगत रूप से मानदेय एवं भत्तों की राशि के लिए निवेदन किया गया, लेकिन हर बार अनदेखी और टालमटोल कर दी गई।
20 पंचों का कहना है कि उन्होंने पंचायत के कार्यों में समय-समय पर सक्रिय भागीदारी निभाई, लेकिन पिछले पांच वर्षों में एक भी बार मानदेय नहीं मिला। यह स्थिति शासन के दिशा-निर्देशों और पंचायती राज व्यवस्था के खिलाफ है। पंचों का आरोप है कि पंचायत सचिव शेरसिंह की मनमानी के पीछे जनपद पंचायत खिरकिया के सीईओ प्रवीण इवने का संरक्षण है, जिसके चलते उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती।
ग्रामीणों और पंचों ने बताया कि जब भी सचिव से मानदेय के संबंध में जानकारी मांगी जाती है, वह जवाब देने से बचते हैं या बहानेबाजी करते हैं। कई बार सचिव को लिखित रूप में आवेदन भी सौंपे गए, लेकिन कोई हल नहीं निकला।
ग्राम पंचायत की महिला पंचों ने भी इस मुद्दे पर गहरी नाराजगी जताई। उनका कहना है कि सरकार महिला सशक्तिकरण की बात तो करती है, लेकिन जब महिला पंचों को ही अपने अधिकार और भत्तों के लिए संघर्ष करना पड़े, तो यह पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि पंचों को उनका अधिकार नहीं दिया गया, तो वे जनपद और जिला स्तर पर धरना प्रदर्शन करेंगे और मामले को उच्चाधिकारियों तक ले जाएंगे। उन्होंने मांग की है कि सचिव शेरसिंह को तत्काल हटाया जाए और पांच वर्षों का लंबित मानदेय एवं भत्ता शीघ्र वितरित किया जाए।
पूर्व सरपंचों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी पंचों के पक्ष में आवाज उठाई है और कहा है कि यह मामला केवल भत्ते का नहीं, बल्कि पंचायत व्यवस्था की मर्यादा और पारदर्शिता का है। यदि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का सम्मान नहीं होगा, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर हो जाएगी।
प्रशासन की चुप्पी और पंचायत सचिव की लापरवाही के चलते सावारी पंचायत में निराशा और असंतोष का माहौल बन गया है। अब देखने वाली बात होगी कि प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर क्या कदम उठाता है, या फिर यह मामला भी अन्य शिकायतों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।